बिहार में महागठबंधन की एकता बचाने में गहलोत का ‘जादू’, कांग्रेस के फिर बने संकटमोचक
जयपुर/पटना। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे कांग्रेस पार्टी के लिए किसी संकटमोचक से कम नहीं हैं। बिहार में महागठबंधन की एकता को लेकर उठ रहे सवालों के बीच गहलोत ने अपनी कूटनीतिक समझ और राजनीतिक सूझबूझ से 24 घंटे से भी कम समय में हालात को संभाल लिया।
गहलोत की सादगी और मृदुभाषी व्यक्तित्व के पीछे एक गहरा रणनीतिक दिमाग छिपा है, जो राजनीतिक संकटों को सुलझाने में माहिर माना जाता है। बिहार में उनकी सक्रिय भूमिका ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वे न केवल राजस्थान बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस नेतृत्व के सबसे भरोसेमंद रणनीतिकारों में से एक हैं।
बिहार में महागठबंधन की एकता पर उठे सवाल
हाल के दिनों में बिहार में महागठबंधन (राजद, कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों) के बीच समन्वय की कमी की खबरें चर्चा में थीं। मीडिया रिपोर्ट्स और राजनीतिक हलकों में अटकलें चल रही थीं कि गठबंधन के घटक दलों के बीच मतभेद बढ़ रहे हैं। ऐसे समय में कांग्रेस आलाकमान ने इस स्थिति को सुलझाने की जिम्मेदारी अशोक गहलोत को सौंपी।
गहलोत की मध्यस्थता से बदली तस्वीर
गहलोत ने बिहार पहुंचते ही राजद और कांग्रेस नेताओं से लगातार बैठकें कीं, सभी की शंकाएं दूर कीं और संवाद की नई पहल शुरू की। उनकी इस संवेदनशील और संयमित मध्यस्थता का परिणाम यह हुआ कि महागठबंधन ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एकजुटता का प्रदर्शन किया।
इस दौरान सभी दलों ने आगामी चुनावों को मिलकर मजबूती से लड़ने का ऐलान किया और मीडिया के सामने यह स्पष्ट संदेश दिया कि महागठबंधन पहले से अधिक मजबूत और एकजुट है।
‘संकटमोचक’ गहलोत की खासियत
अशोक गहलोत की यह उपलब्धि कोई नई नहीं है। राजनीति के उनके लंबे अनुभव, संतुलित सोच और शांति से संवाद करने की कला ने उन्हें हमेशा एक “संकट प्रबंधक” की भूमिका में सफल बनाया है।
राजस्थान की राजनीति हो या राष्ट्रीय स्तर पर कोई पेचीदा स्थिति — गहलोत हर बार अपनी धैर्यशील रणनीति से परिस्थितियों को सहज बना देते हैं।
Media Desk