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बजरंग, साक्षी, दीपक और सुधीर लाए गोल्ड; 1 सिल्वर और एक ब्रॉन्ज भी झोली में

Kailash Kumawat
Last updated: 2022/08/24 at 9:46 PM
Kailash Kumawat Published 06/08/2022
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इंग्लैंड में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स में हरियाणा के पहलवानों ने शुक्रवार को लठ गाड़ दिया। रेसलिंग में बजरंग पूनिया, साक्षी मलिक और दीपक पूनिया और पैरा पावर लिफ्टिंग में सोनीपत के लाठ गांव के सुधीर ढ़ोचक ने गोल्ड जीता। वहीं अंशु मलिक ने सिल्वर और मोहित ग्रेवाल ने ब्रॉन्ज मेडल लिया।



कॉमनवेल्थ गेम्स में हरियाणा के 43 खिलाड़ी विभिन्न खेलों में भाग ले रहे हैं। अब तक 7 स्वर्ण समेत 21 मेडल हरियाणा की झोली में आ गए हैं। वर्ष 2018 के कॉमनवेल्थ में प्रदेश के खिलाड़ियों ने 22 पदक जीते थे। इस बार यह पिछला रिकॉर्ड टूटने वाला है।
सोनीपत के रेसलर बजरंग पूनिया पर हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे देश की निगाहें टीकी हुई थीं। रात 10 बजे के करीब मुकाबला हुआ तो कुछ मिनटों में उसने गोल्ड वाली पटकनी दे दी। बजरंग पूनिया ने पुरुषों के 65 KG फ्रीस्टाइल के फाइनल में कनाडा के लचलान मैकनील को 9-2 से मात दी है। इससे पहले दिन में उन्होंने सेमीफाइनल मुकाबले में इंग्लैंड के जॉर्ज रैम को 10-0 से हराया था। मॉडल टाउन में उसके पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की भी मैच पर निगाहें थीं। पिता बलवंत सिंह ने कहा कि पूरा विश्वास था कि इस बार बेटा गोल्ड ही लाएगा। पूरी तैयारी के साथ गया था। कोई दबाव नहीं था और हर मुकाबला अच्छे से खेला। भाई हरेंद्र ने मिठाई बांटी।

रोहतक की रेसलर साक्षी मलिक शुक्रवार को दो मुकाबलों के लिए उतरीं और दोनों में विजेता रह कर देश को गोल्ड दिलाया। साक्षी मलिक तीसरी बार कॉमनवेल्थ गेम्स में गई हैं। रोहतक की नई अनाज मंडी के पास सुनारिया चौक स्थित साक्षी मलिक की ससुराल में उनके पति, परिवार के बाकी सदस्यों और आस पड़ोस के लोगों ने TV पर लाइव मैच देखा।

साक्षी के दांव-पेंच और जीत के साथ पूरा घर तालियों से गूंजता रहा। पति अर्जुन अवार्डी सत्यव्रत कादियान ने कहा कि कॉमनवेल्थ में गोल्ड जीतना साक्षी का सपना था और यह सच हो गया है। उन्हें नहीं लगता था कि इस बार कोई अड़चन उनकी राह में आएगी। अब वे साक्षी के स्वागत की तैयारी करेंगे।

रेसलिंग में हरियाणा के झज्जर जिले के गांव छारा निवासी दीपक पूनिया ने स्वर्ण पदक देश की झोली में डाला। दीपक पूनिया ने 86 किग्रा. फ्री-स्टाइल कुश्ती में पाकिस्तान के मोहम्मद इनाम बट्‌ट को 3-0 से मात दी। पूरे मैच में दीपक पूनिया हावी नजर आए और पाकिस्तानी रेसलर थके हुए से दिखाई दिए। टोक्यो ओलिंपिक में सैन मारिनो के पहलवान माइलेस नाजिम अमीन ने पूनिया की पदक की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था।

पदक चूकने से वह एकदम टूट से गए थे। हाल ही में एशियन चैम्पियनशिप में भी पूनिया गोल्ड से चूके थे। मगर अब सारी कसर पूरी कर ली। दीपक के पिता सुभाष पूनिया एक डेयरी किसान हैं। वे ही दीपक को दंगल में ले जाते थे। दीपक ने अपने कुश्ती करियर की शुरुआत पांच साल की उम्र में अपने गृहनगर अर्जुन अवार्डी वीरेंद्र सिंह छारा के नेतृत्व वाले एक अखाड़े में की थी। पिता अब कॉमनवेल्थ में बेटे के गोल्ड लाने पर फूला नहीं समा रहे।

कॉमनवेल्थ गेम में सोनीपत के पैरा खिलाड़ी सुधीर लाठ ने पावर लिफ्टिंग में देश को गोल्ड दिलाया है। जींद में पावर लिफ्टिंग के सीनियर कोच सुधीर ने जीत के बाद अपना मेडल पिता राजबीर सिंह के नाम किया। पूरे परिवार को खुशी के बीच एक गम यह है कि सुधीर के पिता बेटे को ऊंचाइयों पर नहीं देख पाए। 2018 में एशियन गेम में ब्रॉन्ज मेडल जीतने के बाद सुधीर के घर लौटने से 3 दिन पहले ही उनकी मौत हो गई थी। वे CISF से रिटायर्ड थे। बेटे के गोल्ड जीतने से खुश मां सुमित्रा ने कहा कि बेटे ने कहा था कि घर से जा रहा हूं तो खाली हाथ नहीं आऊंगा। BA में पढ़ रहे छोटे भाई साहिल ने कहा कि भाई ने जमकर तैयारी की थी।


पिछले कई सालों से देश में उनके मुकाबले का कोई खिलाड़ी नहीं था। सुधीर वर्ष 2017 में वर्ल्ड गेम और 2018 में एशियन गेम में मेडलिस्ट हैं। सुधीर लाठ पूरी तैयारी के बावजूद वर्ष 2020 में ओलिंपिक के लिए चूक गए। कोरोना की वजह से वे ओलिंपिक के लिए हुए ट्रायल में भाग नहीं ले पाए थे। इसके चलते वे कुछ दिन मायूस रहे, लेकिन फिर से पूरी ताकत के साथ सोनीपत SAI में अगले मुकाबलों की तैयारी में जुट गए थे। पिछले कुछ सालों में जो भी प्रतियोगिताएं हुई हैं, वे उसमें जीत कर ही लौटे।

जींद के गांव निडानी की रेसलर अंशु मलिक मात्र 21 वर्ष की हैं। वे पहली बार कॉमनवेल्थ में खेलने गईं और सिल्वर मेडल लेकर लौटी हैं। अंशु मलिक ने जहां पहले दो मुकाबले बड़ी आसानी से मात्र 64 सेकंड में जीते। वहीं फाइनल में नाइजीरिया की ओदुनायो उनके लिए चुनौती रहीं। ओदुनायो ने 2018 कॉमनवेल्थ में भी भारत की पूजा डांढ़ा को हरा कर स्वर्ण पदक जीता था। वहीं, 2014 गेम में ओदुनायो ने भारत की ही ललिता सेहरावत को हराया था। लगातार तीसरे कॉमनवेल्थ गेम में उन्होंने भारत के पहनवान को हराया। अंशु भी फाइनल में हार के बाद रोने लगी थीं।

अंशु मलिक 2018 के टोक्यो ओलिंपिक में पहले ही राउंड में हार गई थीं। इससे उसका हौसला कम नहीं हुआ, बल्कि वह और अधिक मेहनत करने लगीं। अंशु मलिक ने राष्ट्रमंडल खेलों के लिए लखनऊ में तैयारी की। उनके पिता धर्मवीर मलिक भी अंतरराष्ट्रीय पहलवान रह चुके हैं। उनके चाचा पवन मलिक तो दक्षिण एशियाई खेलों के गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। अंशु का छोटा भाई शुभम भी पहलवानी करता है।

भिवानी के गांव बामला के रहने वाले मोहित ग्रेवाल वर्ष 2013 में अखाड़े में उतरे और वर्ष 2016 में तब चर्चा में आए जबकि वे तुर्की में वर्ल्ड स्कूल चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत कर लौटे। शुक्रवार को उन्होंने अपने पहले ही कॉमनवेल्थ गेम में ब्रॉन्ज मेडल झटका। ब्रॉन्ज मेडल के बाद मोहित ने कहा कि उनकी तैयारी गोल्ड की थी, लेकिन कांस्य मिला है। उन्होंने कहा, ‘अगली बार मेरा टारगेट गोल्ड ही रहेगा और लेकर आऊंगा। मैंने ठान लिया था कि भारत के लिए मेडल ज़रूर लेकर जाना है। मैं एशियन गेम्स के लिए तैयारी करूंगा।’

ब्रॉन्ज मेडल के लिए मोहित का मुकाबला 125 किग्रा कुश्ती में जमैका के पहलवान आरोन जॉनसन से हुआ और उन्होंने मुकाबला 6-0 से जीता। 2018 जूनियर एशियाई चैंपियनशिप में मोहित ग्रेवाल ने कांस्य पदक जीता था। घुटने की चोट के कारण उन्होंने 2019 और 2020 में किसी भी चैंपियनशिप में हिस्सा नहीं लिया। इस दौरान उन्हें कुश्ती से कुछ दिनों के लिए अलग होना पड़ा।

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