प्रकृति ने मनुष्य को सब कुछ दिया हैं, लेकिन कुछ लोग अपने आपको निर्धन मानते हैं, जबकि वो निर्धन नहीं हैं, सर्व सम्पन्न हैं। लोग सोचते हैं की अमुक व्यक्ति के पास सब साधन हैं, सुविधाएं हैं, इसलिये वो आगे बढ़ा हैं, बड़ा बना हैं। मेरे पास साधन व सुविधाएं नहीं हैं, और खुद को कमजोर व साधनहीन समझने लगता हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं हैं।
व्यक्ति के पास सबसे अनमोल शरीर और समय हैं। उसकी कोई क़ीमत नहीं लगा सकता, अगर वो समय व शरीर का सही सदुपयोग करें तो वो बड़ा बन सकता हैं।

हमें मन की दुर्बलता व निर्धनता को दूर करना होगा, भीतर से आत्मविश्वास को जगाना होगा की मेरे पास सब साधन हैं तथा मैं सर्व सम्पन्न हुँ। जितने भी साधन मेरे पास प्राप्त हैं वो पर्याप्त हैं। उसी से मुझे आगे बढ़ना हैं, और सफल होना हैं। जो व्यक्ति अपने मन की दुर्बलता, कमजोरी व निर्धनता में जीता हैं वो व्यक्ति कभी अपने जीवन में लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता।
याद रखें….साधनों व सुविधाओं से व्यक्ति आगे नहीं बढ़ा जाता, बल्कि कम साधनों में मेहनत व संघर्ष करता हैं वो आगे बढ़ता हैं। मनुष्य के पास वो सब कुछ शक्ति व सामर्थ्य हैं जिससे वो अपने बड़े से बड़े लक्ष्य को भी प्राप्त कर सकता हैं। बस खुद की क़ीमत को समझें।
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एक कहानी से समझें….
गुरूदेव रविंन्द्रनाथ टैगोर कब कभी अमृत भवन आकर ठहरते, उनको चाहने वालों का तांता लग जाता। लोग उनसे प्रश्न करते। वहाँ एक व्यक्ति रोज मुँह लटकाकर, उदास होकर आ जाता और पीछे बैठ जाता। एक दिन टैगोर ने उससे पूछा, कि तुम इस तरह हर बार उदास, हताश क्यों रहते हो?
कुछ कहते व बताते क्यों नहीं। उस युवक ने कहा – मैं बहुत निर्धन हुँ गुरुदेव। टैगोर बोले – “तुम मुझे तुम्हारी एक आँख दे दो, मैं तुम्हें एक लाख रूपये दे दूंगा। युवक बोला – यदि मैं एक आँख आपको दे दूँ तो मैं काना हो जाऊँगा।
इस पर टैगोर ने कहा – तुम्हारे पास दो हाथ व दो पैर भी हैं। यदि तुम इनमें से कुछ भी दे दो तो मैं तुम्हें जो कहोगे, मुँह मांगी क़ीमत दूंगा।

युवक बोला- मैं यह अंग कैसे दे सकता हुँ। ये मेरे लिए काफ़ी अनमोल हैं। टैगोर मुस्कुराये और बोले – जब तुम्हारे पास इतनी महत्वपूर्ण चीजें हैं, और इतनी कीमती चीजों के तुम राजा, मालिक हो, फिर तुम अपने आपको निर्धन कहकर अपना मजाक क्यों उड़ाते हो। युवक समझ गया और आशीर्वाद लेकर रवाना हो गया…
कहने का अर्थ हैं कि हम अपने मन से कभी भी अपने आपको निर्धन, दुर्बल, कमजोर न समझें, सदा विजय होगी।
– स्वामी सत्यप्रकाश
(आध्यात्मिक गुरु, प्रेरक वक्ता, लेखक व योगी)