ध्यान हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं, आज के इस भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य मेहनत करता हैं, शारीरिक परिश्रम करता हैं, जीवन में कुछ हासिल करने के लिये धन अर्जित कर जीवन यापन करता हैं।
तमाम साधन, संसाधन, गाड़ी, बंगला पाने के बाद भी मनुष्य के मन में आत्मशांति नहीं हैं, हमेशा तनावग्रस्त जीवन जीते हैं। तनिक भी परेशानी या मुश्किलें आ जाए तो विचलित हो जाते हैं और अपने आपको कमजोर समझने लगता हैं,
वैसे आत्मशांति बाहर के भौतिक पदार्थों, संसाधनों, साधनों से नहीं प्राप्त की जा सकती, आत्मशांति हमें ध्यान के माध्यम से भीतर से ही प्राप्त होती हैं। जैसे शरीर काम करते-करते थक जाता हैं वैसे ही हमारा मन भी थक जाता हैं। मन को भी आराम की जरूरत होती हैं।

हमारा मन शांत करने के लिए संयम बरतना होगा। ध्यान का वास्तविक अर्थ दिमाग़ के विचारों को शून्य करना, संकल्प – विकल्प को रोकना। हमारा मन व दिमाग़ तभी स्थिर हो सकता हैं जब हमारा चिंतन रुकेगा। विवेकी व संतोषी मन को ही आत्मशांति प्राप्त होती हैं।
- Advertisement -
ध्यान को अपनी दिनचर्या में ढालिये। सुबह उठते ही आप किसी वस्तु, स्थान या अन्य का चिंतन न करें। जहाँ आराम से बैठ सकते हैं वहाँ आँखे बंद करके शांत व प्रसन्न मुद्रा में ध्यान में बैठें, व अनुभव करें की मैं खुद शांत हुँ…संसार अलग हैं मैं बिल्कुल संसार से अलग हुँ।

साथ ही यह अनुभव जरूर करें की ब्रम्हाण्ड की सारी ऊर्जा मुझमे समाहित हैं। आकाश, पृथ्वी, वायु, जल व अग्नि (पंचतत्व) का बल व ऊर्जा मेरे साथ हैं, ऐसा अनुभव करें। और निरंतर ॐ का उच्चारण करें व धीरे धीरे अपने अभ्यास को बढ़ाएं, गहराई में उतरें विचार शून्य होते ही आनंद व शांति की अनुभूति होगी।
ध्यान हमेशा सुबह के समय अति लाभप्रद होता हैं। निरंतर ध्यान करने से व्यक्ति हमेशा सकारात्मक तथा आत्मविश्वसी होता हैं, व जीवन में कैसी भी परिस्थितियों से आसानी से पार हो जाता हैं। साथ ही प्राणायाम भी करें क्यूंकि ध्यान में प्राणायाम अति लाभकारी होता हैं।
ध्यान को अपनी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाइये, व जीवन में आनंद, आत्मशांति का अनुभव प्राप्त करें।
— स्वामी सत्यप्रकाश
(आध्यात्मिक गुरु, प्रेरक वक्ता, योगी व लेखक)