हमारा जीवन कीमती नहीं अनमोल हैं। जीवन तो मिल गया लेकिन जियें कैसे? यह हमें समझना होगा। कई लोग जीवन को बोझ समझने लगते हैं, बोझ नहीं यह हमारा बहुत बड़ा उपहार हैं की हमें मनुष्य जीवन मिला हैं।
खाना-पीना, घूमना- फिरना, बातें करना और सो जाना यही जीवन नहीं हैं, इसके अलावा भी मनुष्य जीवन का बहुत से कर्तव्य हैं। यह जीवन हमें परमात्मा ने इसलिये दिया हैं की हम कर्म करते हुवे जीवन जियें। हम कैसा कर्म करके जीवन जीना चाहते हैं। अच्छे कर्म या बुरे कर्म हमारे हाथ में है। सबसे पहले खुद अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करें की मुझे कैसा जीवन जीना हैं, वही लक्ष्य आपके जीवन का निर्माण करेगा।
लोग जीवन दो तरिके से जीते हैं एक सकारात्मक जीवन व दूसरा नकारात्मक, नकारात्मक वह लोग होते हैं जो जीवनभर हमेशा दूसरों में दुर्गुण, कमियाँ व बुराईयां ढूंढ़ते रहते हैं, खुद भी कुछ अच्छा नहीं करते और दूसरों के जीवन में बाधा डालते हैं, ऐसे लोग जीवन में कभी सफल नहीं होते हैं।

एक वो लोग होते हैं जो अपना, परिवार, समाज, संस्कृति व राष्ट्र के लिए कुछ करना चाहते हैं, सबके लिये अच्छा सोचते हैं। सकारात्मक जीवन ही सफल होता हैं।
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हम किसी से कुछ उम्मीद ना रखें बल्कि खुद अपने पैरो पर खड़ा होने की ठाने और जीवन में हर दिन कर्म करें, व नया कुछ सीखें व अनुभव करें, तथा अपनी दैनिक दिनचर्या सुव्यवस्थित करें व सदाचारी जीवन जियें। हमें दूसरों के दुर्गणों को नहीं देखना हैं, उनमे अच्छाईयां क्या हैं वो हमें जीवन में अपनाना हैं। अहिंसावादी व सत्यवादी जीवन होना चाहिए। अगर आप जीवन में सच्चाई व ईमानदारी पर खरे हैं तो कोई आपको कमजोर नहीं कर सकता हैं, क्यूंकि व्यक्ति के जीवन का निर्माण उसके संस्कार, व्यवहार व आचरण से होता हैं।
इसलिये जीवन ऐसे जियें जब लोग आपके साथ रहे तो उन्हें आनंद आये, उन्हें अच्छा लगे तथा जब दुनिया से चले जाएँ तो आपकी कमी महसूस हो…ऐसा जीवन जीना चाहिए, हम किसी के प्रेरणास्रोत बन सके, लोगों को प्रेरणा मिलें।
– स्वामी सत्यप्रकाश
(आध्यात्मिक गुरु, प्रेरक वक्ता, योगी व लेखक)