हर कोई मनुष्य सुकून, शांति की जिंदगी जीना चाहता हैं, वो तमाम कोशिश जरूर करेगा की उसे शांति व आनंद मिलें। जीवन एक सबसे बड़ी उपलब्धि होती हैं, उससे भी बड़ी उपलब्धि जीवन जीना होता हैं, कि उसने कैसा जीवन जिया हैं। हमारे सौ साल कि जिंदगी मायने नहीं रखती बल्कि उस सौ साल कि जिंदगी में से दस साल भी जियें हैं तो वो कैसे जियें हैं वो मायने रखता हैं।मनुष्य के पास वैसे तो प्रकृति व परमात्मा ने सब कुछ दिया हैं, कोई कमी नहीं रखी देने में, लेकिन मनुष्य अपनी आवश्यकता के अनुसार उसे पाने के लिये जीता हैं।

आज के इस भागदौड़ भरी जिंदगी में, आधुनिक युग में व्यक्ति के पास सब कुछ होते हुवे भी तनावग्रस्त हैं, मन को शांति सुकून नहीं हैं, व्यक्ति चाहते हुवे भी भौतिक साधनों में उन्हें शांति नहीं मिलती।
व्यक्ति पैसा, गाड़ी, बंगला, फैक्ट्री सब कुछ हासिल करने के बाद भी वो खालीपन महसूस करता हैं, मन बैचैन हैं। हाँ यह सच हैं की संसार के साधनों, संसाधनों व सुविधाओं से इच्छा की तो पूर्ति हो सकती हैं लेकिन शांति नहीं मिलती हैं। आखिर शांति कहाँ? शांति हमारे भीतर छिपी हुईं हैं, उस शांति को हमें भीतर से जागृत करना होगा। हमारे अंदर वो विशाल शक्ति का भंडार हैं, उसे पाकर हम अपने आपको दिव्य व महान बना सकते हैं। उस दिव्य शक्ति को हमें पहचानना होगा।
और हमारे जीवन की दैनिक दिनचर्या सुव्यवस्थित हो, दैनिक दिनचर्या में योग, प्राणायाम, व ध्यान का होना जरूरी हैं। क्यूंकि अध्यात्म में अद्भुत शक्ति हैं, वो चंचल मन को स्थिर करता हैं। जीवन को पतन से बचाता हैं।
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आध्यात्मिक ऊर्जा का हम नित्य अनुभव करें। चौबीस घंटे में ऐसा समय निकालें व खुद से मुलाक़ात करें। समय का सदुपयोग हो और आलस्य से अपने आप को दूर रखें क्यूंकि आलस्य व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु होता हैं।
जीवन में हम किसी पर निर्भर नहीं बने, न किसी से उम्मीद न किसी से कुछ अपेक्षा… जितना खुद कर्म कर सकते है उतना करने का प्रयास करें। भविष्य की चिंता न करके, हमेशा वर्तमान में जियें। कुछ समय अपने तन, मन के लिये कुछ समय निकालें, नित्य स्वाध्याय करें, सकारात्मक सोच व उच्च विचार रखें।
सदा आनंदित रहें, मुस्कुराते रहें…व्यस्त रहें, मस्त रहें… लेकिन अस्तव्यस्त न रहें।
– स्वामी सत्यप्रकाश
(आध्यात्मिक गुरु व प्रेरक वक्ता व लेखक)