क्रोध क्यों आता हैं? जब हमारे मन के, इच्छा के विपरीत कोई कार्य होता हैं तो क्रोध आ जाता हैं। क्रोध के समय मनुष्य का विवेक खत्म हो जाता हैं। क्रोध का आवेग इतना प्रबल होता हैं की कभी-कभी मनुष्य यह भी विचार नहीं करता की जिसने कष्ट पहुंचाया हैं, उसमें कष्ट पहुंचाने की भावना थी या नहीं।
कभी क्रोध के आवेश में आकर किसी को गाली – गलोच कर देते हैं, फिर ग्लानि भी होती हैं, और कभी अचानक पैदल चलते – चलते पत्थर की ठोकर लग जाती हैं तो तुरंत उस पत्थर को तोड़ने लगते हैं। कहने का अर्थ हैं की क्रोध में व्यक्ति कुछ न कुछ नुकसान कर बैठता हैं।

क्रोध आने के मुख्य तीन कारण:-
आग्रह : किसी को हम अपनी बात मनाने के लिये उससे निरंतर आग्रह करते रहते हैं, लगातार प्रयास के बाद भी वो हमारी बात नहीं मानता तो क्रोध उत्पन्न हो जाता हैं।
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आसक्ति: हमारी किसी चीज, वस्तु, स्थान या पदार्थ में आसक्ति हो जाती हैं, या हम उसमें खुद का पूरा हक जमाते हैं, और हमारी आशा के विपरीत फल मिलता हैं तो उसी क्षण आपको क्रोध आयेगा।
अहंकार: अहंकार के कारण भी क्रोध उत्पन्न हो जाता हैं, घर, परिवार या समाज में आप बड़े हैं आपको बिना पूछे कार्य हो जाता हैं तो क्रोध का आना स्वाभाविक हैं।

लेकिन अगर हमारा संयम का अभ्यास हैं तो निश्चित ही हम क्रोध पर विजय पा सकते हैं, हद से ज्यादा कभी किसी से आग्रह मत कीजिये सम भाव रहिये।
आसक्ति किसी भी चीज, वस्तु, पदार्थ या स्थान में मत रखिये।
अहंकार का त्याग करें व अपने आपको सरल व सहज बनाइये।
अगर हम इन तीनों चीजों पर संयम बरत लिया…तो निश्चित ही हम क्रोध पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

– स्वामी सत्यप्रकाश
(आध्यात्मिक गुरु, प्रेरक वक्ता व लेखक)